राग दुर्गा बिलावल थाट का राग है, यह एक उत्तरांग प्रधान राग
है, इस राग में (ग) और (नी) वर्जित स्वर हैं, तथा सभी स्वर
जैसे- सा रे म प ध सां , शुद्ध प्रयोग होता है। राग की अन्य
विशेषताएं इस प्रकार हैं:-
राग - दुर्गा थाट के स्वर - सभी स्वर शुद्ध थाट - बिलावल जाति - औड़व- औड़व ( 5-5 )
वादी - मध्यम ( म ) वर्जित स्वर - (ग), और (नी)
संवादी - षड्ज ( सा ) पूर्वांग / उत्तरांग - उत्तरांग प्रधान राग
आरोह - सा रे म प ध सां
अवरोह - सां ध प म रे, सा रे, ध सा
पकड़ - 1)धऽ म रे, सा रे ध़ सा, रे म प ध, 2)रे रे म रे,ध ध सा
न्यास के स्वर - (रे) , (म) और (ध)
मुख्य अंग - 1)धऽ म रे, सा रे ध़ सा, रे म प ध, 2)रे रे म रे,ध ध सा
गायन समय - रात्रि का दूसरा प्रहर ( निशिथ काल, 9 Pm to 12 am )
प्रकृति - ना अधिक गंभीर, और न ही अधिक चंचल
सम प्रकृति राग - जलधर केदार
अन्य महत्वपूर्ण बातें
(1) यह उत्तरांग प्रधान राग है अतः यह राग मध्य सप्तक और तार सप्तक में खूब खिलता है।
(2) इस राग में (रे प), (रे ध), और (ध म) की संगति बहुत खिलता है।
(3) इस राग में अवरोह में पंचम (प) पर नहीं ठहरना चाहिए।
(4) दक्षिण भारत में इस राग का नाम "शुद्ध सावेरी" है।
(5) राग दुर्गा को दो प्रकार से गाया जाता है, दोनों प्रकार अलग-अलग से उत्पन्न मानते हैं:- प्रथम बिलावल थाट तथा दूसरा खमाज थाट।
(6) कुछ विद्वान राग दुर्गा का वादी संवादी (ध-रे) मानते हैं, और ऐसा करने से "जलधर केदार" से राग "दुर्गा" को कोसों दूर रखा जा सकता है।
राग दुर्गा तथा जलधर केदार
--- दोनों रागों के स्वर, थाट, जाति, वादी संवादी, वर्जित स्वर, तथा गायन समय सब एक ही हैं,, परन्तु-
1) केदार का अंग स्पष्ट दिखाने के लिये इसमें मध्यम पर विश्रांति देते हैं जैसे - सा रे सा म ; ध प म ; सा ध प ध प म ; म रे प म ; सा म रे प ; ध प म ; प म रे सा ;।
2) राग दुर्गा का अंग म रे प ; म रे ,ध सा; है परन्तु जलधर केदार में इसको म रे प ; म रे सा ; रे सा म इस तरह से लेते हैं और म रे ,ध सा नहीं लिया जाता।
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