छठी गीत - आठ ही काठ के कोठरिया हो दीनानाथ
।। स्थाई ।।
(आठ ही काठ के कोठरिया हो दीनानाथ,
रूपे छन लागल केवाड़)2
(ताही ऊपर चढ़ि सूतले हो दीनानाथ,
बांझी केवड़वा धईले ठाढ़)2
।। अन्तरा ।।
1) (चद्दर उघाड़ि जब देखले हो दीनानाथ,
कोन संकट पड़ल तोहार)2
(पुत्र संकट पड़ल मोरा हो दीनानाथ,
ओहि ले केवड़वा धईले ठाढ़)2
2) (चद्दर उघारि देखले हो दीनानाथ,
कोन संकट पड़ल तोहार)2
(नैना संकट पड़ल मोरा हो दीनानाथ,
ओहि ल केवड़वा धईले ठाढ़)2
3) (चद्दर उघारि जब देखले हो दीनानाथ,
कोन संकट पड़ल तोहार)2
(काया संकट पड़ल मोरा हो दीनानाथ,
ओहि ले केवड़वा धईले ठाढ़)2
4) (बांझिन के पुत्र जब दिहले हो दीनानाथ,
खेलत कूदत घर जात)2
(अन्हरा के आँख दिहले, कोढ़िया के कायवा,
हँसत बोलत घर जात)2
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