सत्संग भजन- चलो रे सखि आज पिया के देश
यह जग नाहीं
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र)
।। स्थाई ।।
चलो रे सखि आज पिया के देश
यह जग नाहीं अपने सुख का
रहना इसमें फिर काहे का
छोड़ो ये परदेश ||
।। अन्तरा ।।
1) (माया इसकी बहुत सतावे
मोह जाल में मुझको फँसावे
बिरथा करम भरम के फेर में
मिलता दुःख कलेश ॥
2) (धन सम्पद सब पल में छूटे
आपन ही अपने को लूटे
भोग विलास का मरघट पाया
मिले ना कुछ भी शेष ॥
3) (इकदिन सबको प्रीत लगाना
प्राण प्रिय की रीत निभाना
फिर काहे न तजकर बन्धन
पकड़ो प्रेमी भेष ||
तू ही मेरे ठाम ||
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