होली गीत- कैसी होरी मचाई कन्हाई अचरज लख्यो ना जाई
।। स्थाई ।।
कैसी होरी मचाई, कन्हाई
अचरज लख्यो ना जाई, कैसी होरी मचाई...
।। अंतरा ।। 1 ।।
एक समय श्री कृष्णा प्रभो को, होरी खेलन मन आई
एक से होरी मचे नहीं कबहू, याते करूँ बहुताई
यही प्रभु ने ठहराई, कैसी होरी मचाई...
।। अंतरा ।। 2 ।।
पांच भूत की धातु मिलाकर, अण्ड पिचकारी बताई
चौदह भुवन रंग भीतर भर के, नाना रूप धराई
प्रकट भये कृष्ण कन्हाई, कैसी होरी मचाई...
।। अंतरा ।। 3 ।।
पांच विषय की गुलाल बना के, बीच ब्रह्माण्ड उड़ाई
जिन जिन नैन गुलाल पड़ी वह, सुध बुध सब बिसराई
नहीं सूझत अपनहि, कैसी होरी मचाई...
।। अंतरा ।। 4 ।।
वेद अनेक अनजान की सिला का, जिसने नैन में पायी
ब्रह्मानंद तिस्का तम नास्यो, सूझ पड़ी अपनहि
ओरि कछु बनी न बनाई, कैसी होरी मचाई...
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