राग दरबारी कानडा
राग दरबारी कानडा, आसावरी थाट का राग है।
थाट के स्वर - सा रे ग म प ध नी
(ग ,ध और नी कोमल बाकी सभी शुद्ध स्वर)
जाति - वक्र- सम्पूर्ण (वक्र-7)
वादी स्वर- रे , संवादी स्वर - प
वर्जित स्वर - कभी कभी आरोह में ध को छोड़ दिया जाता है।
आरोह - सा रे ग म रे सा, म प, ध नी सां
अवरोह - सां ध नी प,म प, ग म रे सा
पकड़ - सा रे ग ग सा रे सा ध़ नी़ रे सा
गायन प्रहर - मध्य रात्रि
राग की प्रकृति - शांत और गंभीर।
न्यास के स्वर- सा रे और प।
मिलता जुलता राग - राग अड़ाना।
राग दरबारी कानडा की अन्य विशेषताएं
1) इस राग का विस्तार मंद्र सप्तक और मध्य सप्तक में किया जाता है।
2) इस राग में ग और ध का सीधा प्रयोग नहीं किया जाता है। इनका वक्र प्रयोग किया जाता है। जैसे - ग म रे सा , ध नी प सां ।
3) गंधार को ऋषभ की सहायता से आंदोलित करते हैं, यानी कि ग में रे का कण लगाकर ।
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