राग जैजयवन्ती (जयजयवन्ती)
राग - जयजयवंती
राग जैजयवन्ती, काफ़ी थाट का राग है।
थाट के स्वर - सा रे ग म प ध नी
(ग और नी कोमल बाकी सभी शुद्ध स्वर)
जाति - सम्पूर्ण- सम्पूर्ण (7-7)
वादी स्वर- रे , संवादी स्वर - प
आरोह - सा ध़ नी़ रे, रे ग म प, नी सां
अवरोह - सां नी ध प, ध ग म , रे ग रे सा
पकड़ - रे ग रे सा, नी़ सा ध़ नी़ ग रे
गायन प्रहर - रात्रि का दुसरा प्रहर के अंतिम भाग में
राग की प्रकृति - गंभीर।
विशेष स्वर संगतिया - सां ध नी रे सा रे ग म प ध ग म रे ग रे सा नी ध प रे ग रे सा ।
न्यास के स्वर- सा रे और प।
मिलता जुलता राग - राग देस
राग जयजयवंती की अन्य विशेषताएं
1) आरोह में पंचम के साथ शुद्ध निषाद तथा धैवत के साथ कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है । जैसे - म प नी सां, ध नी रें सां
2) अवरोह में हमेशा कोमल निषाद का प्रयोग किया जाता है ।
3) इस राग में " प रे " की संगति प्रचुरता से होती है , परंतु "प" तथा "रे" दोनों एक ही सप्तक के नहीं होने चाहिए। जैसे यदि "प" मध्य सप्तक का है, तब "रे" तार सप्तक का ले , और यदि "प" मंद्र सप्तक है, तब "रे" मध्य सप्तक का लें । जैसे- प़ रे, प रें
4) कोमल 'ग' का अल्प प्रयोग केवल अवरोह में दो ऋषभ के बीच होता है। जैसे - रे ग रे सा नी़ सा
5) यह राग परमेल - प्रवेशक राग भी है। क्योंकि ऐसे राग जो एक थाट से दूसरे ठाट में प्रवेश कराते हैं, परमेल -प्रवेशक राग कहलाते हैं। और इस तरह राग जयजयवंती खमाज थाट से काफी ठाट में प्रवेश कराता है ।जैसे खमाज थाट में 'ग' शुद्ध और काफी थाट में 'ग' कोमल होता है, और राग जयजयवंती में दोनों 'ग' का प्रयोग होता है।
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