राग सोहनी
राग सोहनी
राग सोहनी, मारवा थाट का राग है।
थाट के स्वर - सा रे ग म' प ध नी
(रे कोमल , म तीव्र और सभी शुद्ध स्वर)
जाति - षाड़व- षाड़व (6-6)
वादी स्वर- ध , संवादी स्वर - ग
वर्जित स्वर - 1) पंचम (प) आरोह तथा अवरोह दोनों में।
2) रिषभ (रे) केवल आरोह में।
आरोह - सा , ग , म' ध नी सां रें सां
अवरोह - सां रे सा, नी ध ग ,म' ध ग, म' ग रे सा
पकड़ - सां नी ध, नी ध म ग म ध नी सा रे सां
गायन प्रहर - रात्रि का अंतिम प्रहर (प्रातः कालीन संधि प्रकाश राग)
राग की प्रकृति - चंचल।
विशेष स्वर संगतिया - म' ध नी सां, रे सा, ध नी सा नी ध, म' ग , सा नी रे सा, ध नी सा नी ध।
न्यास के स्वर- ग ध और सा।
मिलता जुलता राग - पूरिया , हिंडोल और मारवा।
राग सोहनी की अन्य विशेषताएं
1) यह उत्तरांग प्रधान राग होने के कारण अवरोह में अधिक स्पष्ट दिखता है । तथा इसका विस्तार मध्य सप्तक तथा तार सप्तक में अधिक होता है।
2) इसका विस्तार मंद्र सप्तक में करने से राग पूरिया की छाया पड़ सकती है।
3) इस राग को गाते समय, तानपुरे के प्रथम तार को मंद्र निषाद से मिलाते हैं, क्योंकि इसमें ना तो पंचम का प्रयोग होता है और ना ही शुद्ध मध्यम का।
4) इस राग में मध्य सप्तक के सा पर सामान्य , तथा तार सप्तक के सा पर अधिक ठहराव होता है।
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