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।। भोजन-मंत्रः ।।
ॐ ब्रह्मार्पणं ब्रह्महविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणाहुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना 11
गीता अ०४श्लोक-२४
जो अपने आपको ईश्वरीय कार्य में ईश्वरीय प्रेरणा से लगा हुआ होने के कारण ईश्वर (ब्रह्म) रूप मानकर ब्रह्मरूपी अग्नि में, ब्रह्मरूपी आहुति को, ब्रह्म के ही उद्देश्य से हवन करता आया है, उसके ब्रह्म सेवा और त्याग से युक्त यज्ञरूपी कर्म में कोई अन्तर नहीं है, वे एक ही हैं, ऐसी ब्रह्मनिष्ठ बुद्धि हो जाने के कारण वह स्वयं ब्रह्मपद को ही प्राप्त होगा।
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह
वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै॥
ॐ शान्तिः शान्तिः !!शान्तिः !!!
- कठोपनिषद्
हम दोनों गुरु और शिष्य अपने धर्म, संस्कृति, ज्ञान-विज्ञान आदि की साथ-साथ मिलकर रक्षा और अर्जन करें। हम दोनों साथ-साथ मिलकर अन्न आदि का भोग करें। हम मिलकर संगठित पराक्रम करें। हमारी साधना, अध्ययन और ज्ञान तेजस्वी हों, दुर्बल नहीं। हम कभी परस्पर द्वेष न करें। हे परमेश्वर ! हमारे अपने व्यक्तिगत जीवन में, अपने राष्ट्र में तथा सम्पूर्ण विश्व में सर्वत्र शान्ति हो।
।। शान्ति-मंत्रः ।।
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
सभी सुखी हों, सभी स्वस्थ हों । सभी सुंदर दिखें, कभी कोई
दुःखी न हो।
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