।। गणेश प्रार्थना ।।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय ,लम्बोदराय सकलाय जगद्धिताय ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
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भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।
विद्याधराय विकटाय च वामनाय,भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते ।।
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नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः, नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः।
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे, भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक।।
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त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति, भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति।
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति, तेभ्यो गणेश वरदोभव नित्यमेव ।।
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त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या, विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्, त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ।।
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
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गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बूफल चारूभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर - पादपंकजम्॥
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--------------------- अर्थ सहित ----------------------
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विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय ,लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं ।
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय,गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते।।
विघ्नेश्वर, वर देनेवाले, देवताओं को प्रिय, लम्बोदर, कलाओंसे परिपूर्ण, जगत् का हित करनेवाले, गजके समान मुखवाले और वेद तथा यज्ञ से विभूषित पार्वतीपुत्र को नमस्कार है ; हे गणनाथ ! आपको नमस्कार है ।
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वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
हे हाथी के जैसे विशालकाय जिसका तेज सूर्य की सहस्त्र किरणों के समान हैं । बिना विघ्न के मेरा कार्य पूर्ण हो और सदा ही मेरे लिए शुभ हो ऐसी कामना करते है ।
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गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थजम्बूफल चारूभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर - पादपंकजम्॥
जो हाथी के समान मुख वाले हैं, भूतगणादिसे सदा सेवित रहते हैं, कैथ तथा जामुन फल जिनके लिए प्रिय भोज्य हैं, पार्वती के पुत्र हैं तथा जो प्राणियों के शोक का विनाश करनेवाले हैं, उन विघ्नेश्वर के चरणकमलों में नमस्कार करता हुँ।
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नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥
मैं उन भगवान् गजानन की वन्दना करता हूँ, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाले हैं, सुवर्ण तथा सूर्य के समान देदीप्यमान कान्ति से चमक रहे हैं, सर्पका यज्ञोपवीत धारण करते हैं, एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं तथा कमल के आसनपर विराजमान हैं
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एकदन्तं महाकायं लम्बोदरगजाननम्ं।
विध्ननाशकरं देवं हेरम्बं प्रणमाम्यहम्॥
जो एक दाँत से सुशोभित हैं, विशाल शरीरवाले हैं, लम्बोदर हैं, गजानन हैं तथा जो विघ्नोंके विनाशकर्ता हैं, मैं उन दिव्य भगवान् हेरम्बको प्रणाम करता हूँ ।
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द्वविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिवं।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्॥
जिस प्रकार बिल में रहने वाले मेढक, चूहे आदि जीवों को सर्प खा जाता है, उसी प्रकार शत्रु का विरोध न करने वाले राजा और परदेस गमन से डरने वाले ब्राह्मण को यह समय खा जाता है ।
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रक्ष रक्ष गणाध्यक्ष रक्ष त्रैलोक्यरक्षकं।
भक्तानामभयं कर्ता त्राता भव भवार्णवात्॥
हे गणाध्यक्ष रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिये । हे तीनों लोकों के रक्षक! रक्षा कीजिए; आप भक्तों को अभय प्रदान करनेवाले हैं, भवसागर से मेरी रक्षा कीजिये ।
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केयूरिणं हारकिरीटजुष्टं चतुर्भुजं पाशवराभयानिं।
सृणिं वहन्तं गणपं त्रिनेत्रं सचामरस्त्रीयुगलेन युक्तम्॥
मैं उन भगवान् गणपतिकी वन्दना करता हूँ जो केयूर-हार-किरीट आदि आभूषणों से सुसज्जित हैं, चतुर्भुज हैं और अपने चार हाथों में पाशा अंकुश-वर और अभय मुद्रा को धारण करते हैं, जो तीन नेत्रों वाले हैं, जिन्हें दो स्त्रियाँ चँवर डुलाती रहती हैं ।
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भक्तार्तिनाशनपराय गणेश्वराय, सर्वेश्वराय शुभदाय सुरेश्वराय ।
विद्याधराय विकटाय च वामनाय,भक्तप्रसन्नवरदाय नमो नमस्ते ।।
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नमस्ते ब्रह्मरूपाय विष्णुरूपाय ते नमः, नमस्ते रुद्ररूपाय करिरूपाय ते नमः।
विश्वरूपस्वरूपाय नमस्ते ब्रह्मचारिणे, भक्तप्रियाय देवाय नमस्तुभ्यं विनायक।।
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त्वां विघ्नशत्रुदलनेति च सुन्दरेति, भक्तप्रियेति सुखदेति फलप्रदेति।
विद्याप्रदेत्यघहरेति च ये स्तुवन्ति, तेभ्यो गणेश वरदोभव नित्यमेव ।।
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त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या, विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्, त्वं वैप्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः ।।
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