ग़ज़ल - चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
।। स्थाई ।।
चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल
--------।। अंतरा 1 ।। ----------
हम वहाँ जाएँ जहाँ प्यार पे पहरें न लगे
दिल की दौलत पे जहाँ कोई लूटेरे न लगे
कब है बदला ये ज़माना तू ज़माने को बदल, चल
---चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल
--------।। अंतरा 2 ।। ----------
प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं
बिजलियाँ अर्श से खुद रास्ता दिखलाती हैं
तू भी बिजली की तरह ग़म के अंधेरों से निकल, चल
---चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल
--------।। अंतरा 3 ।। ----------
अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उंगली न उठे
अपनी चाहत पे जहाँ कोई भी दुश्मन न हँसे
छेड़ दे प्यार से तू साज-ए-मोहब्बत पे ग़ज़ल, चल
---चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल
--------।। अंतरा 4 ।। ----------
पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में
सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में
बात बनती है अगर दिल में इरादे हो अटल
---चल मेरे साथ ही चल, ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल
इन समाजों के बनाये हुए बंधन से निकल, चल
Comments
Post a Comment