ठाकुर भजन- ओ मनवा रे
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
(ओ मनवा रे ।
साध ले तू अमर जीवन
बाँध ले तू अमृत की धारा
तन तम्बुरे साँसों का ये तार
टूटेगा कब कौन जाने)
।। स्थायी ।।
ओ मनवा रे !
(साध ले तू अमर जीवन
बाँध ले तू अमृत की धारा)2
तन तम्बुरे साँसों का ये तार
टूटेगा कब कौन जाने
(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)2
।। अन्तरा ।।
ओ मनवा रे !
1) (जीवन नैया खेवन चला
कौन भला साहिल है तेरा)2
उफ़न खाती नदिया ये नाव
डूबेगा कब कौन जाने
----(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)2
ओ मनवा रे !
2) (झूठे सब रिश्ते नाते
तेरे मेरे छोड़ दे ये सारा)2
कब किसी के प्रीत का ये साथ
छूटेगा ये कौन जाने
----(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)2
ओ मनवा रे !
3) (जीवन गुरु परमदयाल
प्रभुनाथ सबका सहारा)2
सौंप दे तू अपना ये जीवन
बढ़ेगा ये तू भी जाने
----(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)2
ओ मनवा रे !
4) (बीते दिन भजन बिना
दुर्लभ ये जनम बिगाड़ा)2
मूरख मन मति को आधार
मिलेगा कब कौन जाने
----(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)2
ओ मनवा रे !
5) (अद्भुत् जगत की माया
स्वार्थ करम का सब है मारा)2
भाई बन्धु दारा मीत
लूटेगा कब कौन जाने
----(तोड़ के बन्धन सारे
डोर गुरु की थामो हां आ
डोर गुरु की थामो ऽऽ रे)4
ओ मनवा रे !
।। जय गुरु ।।
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