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सत्संग भजन- साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। स्थायी ।।
(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2
(प्रभु चरणन बिना
कछु नाहीं भावे ) 2
(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2
।। अन्तरा ।।
1) (देव दनुज मुनि, नाग मनुज सब,
माया विवश विचारे)2
(जाऊँ कहाँ प्रभु)2
तज के चरण तुम्हारे
---(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2---
2) (मुरली हमारो हर, लीनो चितवन,
श्याम के रंग रँगावे)2
(जाऊँ कहाँ प्रभु)2
तज के चरण तुम्हारे
---(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2---
3) (प्रभु दरशन की, प्यास बुझावत,
पतितपावनधन पावे)2
(जाऊँ कहाँ प्रभु)२
तज के चरण तुम्हारे
---(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2---
-----पुनः----
(प्रभु चरणन बिना
कछु नाहीं भावे ) 2
(साँवरिया सहारे
प्रेम की वंशी बजावे)2
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