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सत्संग भजन- प्रभु, अन्तरयामी
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। स्थायी ।।
प्रभु, अन्तरयामी)2
जनमजनम से, जीवन रण में)2
तुम ही हो मेरे स्वामी )2
प्रभु, अन्तरयामी)2
।। अन्तरा ।।
1) (चिन्तन कर्म में, आचारकथन में
स्मरण में तुम, प्रभु वाक्यश्रवण में)2
(सकल चित्त में, ध्यान मनन में)2
तुम ही हो मेरे स्वामी
(अन्तरयामी)3
प्रभु, अन्तरयामी
2) (पूजन तुम मेरा, तुम हो साधना
विद्या ज्ञान प्रभु, तेरी भावना)2
(दिवा जागरण में, निशिनिद्रा में )2
तुम ही हो, मेरे स्वामी
(अन्तरयामी)3
प्रभु, अन्तरयामी
3) (पुलक स्पर्श का,प्रेम तुम्हारा
हृदय स्पन्दित, हर्षित मेरा)2
(दुःख वेदन में, सुख आनन्द में)2
तुम ही हो मेरे स्वामी
(अन्तरयामी)3
--------पुनः--------
प्रभु, अन्तरयामी)2
जनमजनम से, जीवन रण में)2
तुम ही हो मेरे स्वामी )2
प्रभु, अन्तरयामी)2
।। जय गुरु ।।
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