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भजन- परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। स्थायी ।।
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
(आओ रे भक्तों इनके शरण में)2
आओ रे भक्तों इनके शरण में
जीवन के सुख के लिए
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
।। अन्तरा ।।
1) (दया के सागर है ठाकुर जी
सबको दया करते हैं
हर प्राणी को अपना बनाकर
सबको प्रेम करते हैं )
(दया के सागर है ठाकुर जी
सबको दया करते हैं
हर प्राणी को अपना बनाकर
सबको प्रेम करते हैं )
(इनकी नजर में सब है बराबर )2
है मालिक सबके लिए
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
आओ रे भक्तों इनके शरण में
जीवन के सुख के लिए
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
2) (भटक रहा है क्यों दर दर पर
क्या ना मिले क्या मिलेगा
गुरु शरण में आकर देखो
मन को चैन आएगा)
(भटक रहा है क्यों दर दर पर
क्या ना मिले क्या मिलेगा
गुरु शरण में आकर देखो
मन को चैन आएगा)
(इनकी नजर में सब है बराबर )2
है मालिक सबके लिए
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
आओ रे भक्तों इनके शरण में
जीवन के सुख के लिए
(परम दयाल के दरबार
खुला है भक्तों के लिए )2
------जय गरू-----
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