देशभक्ति गीत- दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली
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" भारत दिल है उस पूरब का, जिस पूरब ने हर ज्ञान दिया।
दिए बुद्ध मुहम्मद और ईशा गीता बाईबल कुरान दिया।।
"पूरब में सूरज ने छेड़ी, जब किरणों की शहनाई
चमक उठा सिंदुर गगन पे, पश्चिम तक लाली छाई"
।। स्थाई ।।
दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली
बाहों में लहराये गंगा जमुना, देख के दुनिया डोली
---(दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली)
।। अंतरा ।। 1 ।।
ताजमहल जैसी ताजा है सूरत,चलती फिरती अजंता की मूरत
मेल मिलाप की मेहंदी रचाये, बलिदानों की रंगोली
---(दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली)
।। अंतरा ।। 2 ।।
मुख चमके ज्यों हिमालय की चोटी,हो ना पड़ोसी की नीयत खोटी
ओ घर वालों जरा इसको सम्हालो, ये तो है बड़ी भोली
---(दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली)
।। अंतरा ।। 3 ।।
और सजेगी अभी और संवरेगी,चढ़ती उमरिया है और निखरेगी
अपनी आज़ादी की दुल्हनिया, दीप के ऊपर होली
---(दुल्हन चली, ओ पहन चली, तीन रंग की चोली)
।। अंतरा ।। 4 ।।
देश प्रेम ही आज़ादी की दुल्हनिया का वर है
इस अलबेली दुल्हन का सिन्दूर सुहाग अमर है
माता है कस्तूरबा जैसी! बाबुल गांधी जैसे!
चाचा इसके नेहरु, शास्त्री! डरें ना दुश्मन कैसे!
डरें ना दुश्मन कैसे!
बीर शिवाजी जैसे बिरन लक्ष्मी बाई बहना
लक्ष्मण जिसके बोष भगत सिंह, उसका फिर क्या कहना
उसका फिर क्या कहना!
(जिसके लिये जवान बहा सकते हैं ख़ून की गंगा)2
आगे पीछे तीनों सेना ले के चलें तिरंगा
(सेना चलती है ले के तिरंगा!)2
हों कोई हम प्रान्त के वासी, हों कोई भी भाषा-भाषी
(सबसे पहले हैं भारतवासी!)6
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