रामायण भजन- भरत सम नहीं दुजा कोई त्यागी
।। दोहा ।।
चरण पादुका धरि सिंघासन
करी प्रणाम नित आशिष मांगत
राम विरह के रंग में डूबे
राम प्रेम मूरत से लागत
धर्म काम निर्वान भरतवर
(राम प्रेम बस सब कछु त्यागत)2
।। स्थाई ।।
(भरत सम नहीं दुजा कोई त्यागी)2
राम लखन सिया वन में
भरत भये घर ही में बैरागी
--(भरत सम नहीं दुजा कोई त्यागी)
1) (भूषण बसन भूब सुख भोरे
मन तन बचन तजेतन तोरे)
कहीं पुन बसत भरत बीनू रागा
चँचरित जीवी चंपक बागा
जेही अनुराग विराग का संगम बैरागी अनुरागी
--(भरत सम नहीं दुजा कोई त्यागी)
2) (नंदी गाँव करी बरन कुटीरा
किंह निवास धरम धुरि धीरा)
जाटा जुट सिर मुनि पट धारी
मही खन कुशसा खरी सवारी
बशन बसन बासन ब्रित नेमा
किन्हें रघुवर लागी
--(भरत सम नहीं दुजा कोई त्यागी)
।। दोहा ।।
नित पूजत प्रभु पाँवरी प्रीति न हृदयँ समाति।
मागि मागि आयसु करत राज काज बहु भाँति॥
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