सत्संग भजन- न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती हैगायिका -
।। स्थाई ।।
न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है
न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है
सब पे आती है! विपत तो सब पे आती है!
--(न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है)
।। अन्तरा ।।
1) (विपत आई थी अंधी आंधो पे लाल श्रवण सा पाया था)2
(न देना दोष दशरथ को, विपत तो सब पे आती है)2
सब पे आती है! विपत तो सब पे आती है!
--(न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है)
2) (विपत आई राजा दशरथ पे, राम चलो जब वन को)2
(न देना दोष केकई को, विपत तो सब पे आती है)2
सब पे आती है! विपत तो सब पे आती है!
--(न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है)
3) (विपत आई थी द्रोपदी पे सभा मे चीर हरण करते)2
(न देना दोष कौरवों को, विपत तो सब पे आती है)2
सब पे आती है! विपत तो सब पे आती है!
--(न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है)
4) (विपत आई पाँचो पांडवो पे, छूटा देश घर अपना)2
(न देना दोष जुए को, विपत तो सब पे आती है)2
सब पे आती है! विपत तो सब पे आती है!
--(न देना दोष किस्मत को, विपत तो सब पे आती है)
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