सतगुरु भजन- मेरा रोम रोम हर्षया है, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
।। स्थाई ।।
मेरा रोम रोम हर्षया है, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
(मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है)1+1chorus
।। अन्तरा ।।
1) (मेरे चारों ओर अंधेरा, नहीं दिखता कहीं सबेरा)
नहीं दिखता कहीं सबेरा!
तुने ज्ञान का दीप जलाया, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
(तुने ज्ञान का दीप जलाया, मेने ऐसा सतगुरु पाया है)
--(मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है)1+1chorus
2) (मेरी नाव भंवर में डोल रही,पतवार पकड़ता कोई नहीं)
पतवार पकड़ता कोई नहीं!
तुने भव से पार लगाया, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
--(मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है)1+1chorus
3) (अपनों ने मुझे ठुकराया, गैरों ने न दिया सहारा)
गैरों ने न दिया सहारा!
तुने अपने गले लगाया, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
--(मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है)1+1chorus
4) (मै तो अवगुणों से भरी हुई, मेरे सिर पे गठरी पाप घड़ी)
मेरे सिर पे गठरी पाप घड़ी!
तुने फिर भी मुझे अपनाया, मेने ऐसा सतगुरु पाया है
--(मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है)1+1chorus
------अन्य पंक्तियां------
में तो बंद कली थी बागो की ,सतगुरु ने आज खिलाया है
मेरा रोम रोम हर्षया है,मेने ऐसा सतगुरु पाया है
अन्धकार में मै तो पड़ी हुई ,सतगुरु ने दीप जलाया है
मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है
मेरी बीच भवर में नाव पड़ी ,सतगुरु ने पार लगाया है
मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है
मोह माया में मै तो फसी हुई ,सतगुरु ने फंद छुड़ाया है
मेरा रोम रोम हर्षया है ,मेने ऐसा सतगुरु पाया है
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