रामायण भजन- राम सिया युग युग के साथी बिछड़ जाते हैं
।। स्थाई ।।
विधिना तेरी लेखनी,निष्ठुर निर्मम क्रूर
जो सपने हो नहीं दूर रहे, कर दिया उनको दूर
विधिना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं
(राम सिया युग युग के साथी, बिछड़े जाते है)2
--(विधिना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं)
।। अन्तरा ।।
1) (कैसे हैं ये राजा रानी, कैसी इनकी करुण कहानी)
(ये पलकों पे रोक रहे हैं,पीड़ा के सागर का पानी)2
एक दूजे से एक दूजे की, पीर छुपाते है
राम सिया युग युग के साथी, बिछड़े जाते हैं
--(विधिना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं)
2) (कुलजन परिजन महल अटारी, छूटी जाये अयोध्या प्यारी)
सारा नगर नींद में सोया, क्या जाने किस ने क्या खोया
नीरव निसि ने धरम के रथ पे, जोगन चल दी, कर्म के पथ पे,
बिछड़ के भी ना टूट सके ये, ऐसे नाते हैं
--(राम सिया युग युग के साथी, बिछड़े जाते है)
--(विधिना तेरे लेख किसी की, समझ न आते हैं)
--(राम सिया युग युग के साथी, बिछड़े जाते है)2
"अपनी अंतर्मन से, हरा हुआ है मोन है
रघुवर तो सीता संग गए, जो रह गया वो कौन है
मन की दृष्टि चिंता भावना,केवल सिया की और है
आसा की एक किरण नहीं, कैसे कहु ये भोर है
ये रेन है या भोर है"
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