सत्संग भजन- अब तो शरण में आओ गुरु के(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। स्थायी ।।
अब तो शरण में आओ गुरु के
तोड़के भव के बन्धन सारे
आश करो तुम दयाल प्रभु के ||
मानुष तन ये दुर्लभ पाया
भजन बिना इसे व्यर्थ गँवाया
छोड़ो दुनिया की सब माया
सुमिरो हरपल नाम प्रभु के ||
मूरख मन ने सौ दुःख भोगे
निष्फल सुख से रिश्ता जोड़े
मोह भुलाकर सन्त संगत में
ध्यान धरो अब हरि चरण के ||
दीनदयाल दया के सागर
आए हैं नारायण ईश्वर
विषय वासना छोड़के अब तो
प्रीत लगाओ प्रभु चरण के ||
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