सदगुरु प्रार्थना विहंगम योग
पढ पूर्ण सर्व प्रकाश जन में, भक्ति गुरुवर दीजिए।
सब तरह सब भाव माहिं, जन शरण में लीजिए॥
अध्यात्म क्रान्ति प्रचार जग में, देव पुरण कीजिए।
जन सदाफल बल नहीं है, जस चहो तस कीजिए॥
श्वेत ध्वजा फहराय, 'अ' अंकित मंगल सूचे ।
जीवन देय धराय, दीन सदाफल शरण में ||
काल खाय सब सृष्टि को, ताकर काल सकाल।
हे प्रभु आरत हरण हो, कालक काल करात ॥
दु:खना रहित दु:ख हरत हो. शुद्ध शान्ति तव एप।
हे प्रभु आरत हरण हो दु:ख क्षयसुखहि स्वरूप॥
विहन नाश दुःख नाश हो. वह तीपता नाश |
आरा शान्ति सुख शान्ति हो. तुम बिनु अन्य न आश॥
भगवान् अक्षर सृष्टि का, जन्माा क्रिय वन जाहिसे।
त्यापक निरन्तर विश्व में, जग जीत गति गमताहि रो॥
विश्व मम परचार है, अध्यात्म योग सजाहि से |
शैतान भ्रम बहकाव जीवन, पतन भव भय ताहि से ॥
अक्षर पुरुष प्रभाव में, शैतान नष्ट प्रशान्त हो।
शिष्य सन्त समाज बाढ़ें, दुष्ट खल दल अन्त हो।।
मूढ़ ढुलमुल शिष्य भी, गुरुतरण में लागे रहे।
जन 'सदाफल' विहन नाशे, देव अक्षर गम रहे।
अक्षर देव समक्ष में, यह कारज वर दीन्ह।
क्षेत्र शान्त परचार है, देव सदाफल लीन्ह॥
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