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सत्संग भजन- प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। स्थायी ।।
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
कैसा रास रचायो
(प्रेम जाल में फंस गया मनवा
तुम बिन कुछ ना सुहायो)2
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
तू ने कैसा रास रचायो
।। अन्तरा ।।
1) मोह को तोड़ा माया हटाई
(भक्ति प्रेम का पाठ पढ़ाई)2
(विषय भरम सब बिखर गया अब)2
तुमने नीति बतायो
प्रभु! तुमने नीति बतायो
---(प्रेम जाल में फंस गया मनवा
तुम बिन कुछ ना सुहायो)2
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
कैसा रास रचायो
2) जगत मुझको लगे पराया
(मान लालसा सबको भुलाया)2
(सकल वासना बन्धन छोड़ा)2
तुमसे प्रीत लगायो
प्रभु! तुमसे प्रीत लगायो
---(प्रेम जाल में फंस गया मनवा
तुम बिन कुछ ना सुहायो)2
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
कैसा रास रचायो
3) जनम जनम की प्यास बुझाई
(चरण में आश्रय मैंने पाई)2
(भवभय शंका ताप दहन को)2
तुमने आज मिटायो
तुमने आज मिटायो
---(प्रेम जाल में फंस गया मनवा
तुम बिन कुछ ना सुहायो)2
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
कैसा रास रचायो
4) मेरे मन की तू है ज्योति
(अब तो तू ही मेरी शक्ति)2
( दास हूं तेरा सेवा करूं मैं )2
जीवन तुझको चढ़ायो
प्रभु! जीवन तुझको चढ़ायो
---(प्रेम जाल में फंस गया मनवा
तुम बिन कुछ ना सुहायो)2
प्रभुजी तू ने कैसा रास रचायो
कैसा रास रचायो
(तू ने कैसा रास रचायो)3
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