शिव भजन - गऊरा जानी ना नईहरवागायक - कल्लू (अरबिंद अकेला)
।। स्थायी ।।
(काहे नाश्ता हमार ना तैयार भईल बा
भांग पीसत पीसत जीव हार गईल बा)2
सुन मोरा गउरा न रुचे दाल चउरा
मने नाहीं भरे फलाहारवा
(दिनभर भांग के जो देह बुअ डरब त
छोड़ी के जाईब नईहरवा)2
।। अन्तरा ।।
1) (जा नी गुस्सा कर गउरा रानी
अभी ढेर हम टेनसन में बानी)
कईसे हम भगाई करोना
भांग खाके ई सोच तानी
सुनी! (देखी न दुबराई गईनी जी
हम केतना सुखाई गईनी जी)
हमरा के देदा तू हू भंगिया आहरवा
अपने ला सेउवा आनारवा
---(दिनभर भांग के जो देह बुअ डरब त
छोड़ी के जाईब नईहरवा)2
2) (बड़ा फायदा करेला ई बूटी
सारा टेंशन से मिलेला छुटी)
चाहे निमन कह चाहे बाउर
इ ह हमरा ल अमृत के घुटी
(साचो ए भोला लोला हई का
पुरा बकलोला हई का)
कर न लड़ाई ए गणेश के माई
सावन भर सम्हार द न घरवा
ना भोला! नाऽ!
---(दिनभर भांग के जो देह बुअ डरब त
छोड़ी के जाईब नईहरवा)2
-----पुनः----
(काहे नाश्ता हमार ना तैयार भईल बा
भांग पीसत पीसत जीव हार गईल बा)2
सुन मोरा गउरा न रुचे दाल चउरा
मने नाहीं भरे फलाहारवा
(दिनभर भांग के जो देह बुअ डरब त
छोड़ी के जाईब नईहरवा)2
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