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सत्संग भजन- प्रियपरम से ही प्रकाश है जग आलोकित है
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
Lyrics - Dhritiman singh Music - Rev.
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)2+1 chorus
।। स्थायी ।।
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)2
(अंधकार में खोये नहीं)2
जो उनसे प्रकाशित है
(जग आलोकित है)
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)2
।। अन्तरा ।।
1) (अंतर-नियमन करते जो,
जिस विधि चंचल वृत्ति को,)2
(अन्तर्यामी ईश्वर है वो)2
हद उन्मोचित्र है
---जग आलोकित है
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)2
2) (ज्ञान-प्रदीप की बोधी-दृष्टि
शुष्क ह्दय को सिंचित करती)2
(सार्थक जिससे जीवन-ज्योति)2
जीव-जगत उद्भासित है
(व्याप्त जगत के कण-कण में,
जन-जीवन अंन्तर-मन में,)2
(अमिय-प्रेम आनंदघन में)2
चित्त आंदोलित है
---जग आलोकित है
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)
-------पुनः------
(अंधकार में खोये नहीं)2
जो उनसे प्रकाशित है
(जग आलोकित है)
प्रियपरम से ही प्रकाश है,
(जग आलोकित है)6
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