सत्संग भजन- सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
(श्री श्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी)
।। मुखड़ा ।।
तुम जो देते हो मालिक वही अच्छा है
मेरी चाहत ने मारा है
अंधियारे ने ज्योति प्रकाश का
तुमसे ही तो सारा है
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।। स्थायी ।।
(सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ)2
(उन्हीं दयाल का चरण पकड़ ले)2
काल करे ना घात ।।
मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
।। अन्तरा ।।
1) (संगी न साथी मीत न कोई,ठगने आए बन्धु भाई)2
चेतो अब भी शरण में आओ, चेतो अब भीऽऽऽ
चेतो अब भी शरण में आओ
चरण झुकाओ माथ ॥
----मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
(उन्हीं दयाल का चरण पकड़ ले)2
काल करे ना घात ।।
मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
2) (धन सम्पद सब काम न आवे,माया बन्धन छिन में रिझावे)2
दो पल का ये मिट जावेगा, दो पल का येऽऽऽ
दो पल का ये मिट जावेगा
छोड़ो इनका साथ ॥
----मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
(उन्हीं दयाल का चरण पकड़ ले)2
काल करे ना घात ।।
मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
3) (साधो गुरु का कहना मानो, भक्ति प्रेम को मन में ठानो)2
सेवक बनकर उनको पाओ, सेवक बनकरऽऽऽ
सेवक बनकर उनको पाओ
प्रभु पकड़ेंगे हाथ ||
---मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
(उन्हीं दयाल का चरण पकड़ ले)2
काल करे ना घात ।।
मेरे मालिक जगत के नाथ
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
-----पुनः----
सुनो रे भाई मेरे मालिक जगत के नाथ
(मेरे मालिक जगत के नाथ)2
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