"अध्वदर्शक स्वर" क्या होता है
रागों की गायन समय को निर्धारित करने के लिए अनेक तरीके अपनाए गए हैं, उन्हीं तरीकों में से एक है, अध्वदर्शक स्वर। अध्वदर्शक स्वर मध्यम यानी "म" को कहा गया है। अर्थात स्वर "म" के द्वारा यह पता लगाया जा सकता है कि राग का गायन समय दिन है अथवा रात्रि।
शास्त्रकारो ने 24 घंटे के समय को दो बराबर भागों में विभाजित किया । प्रथम भाग को पूर्वार्ध तथा दूसरे भाग को उत्तरार्ध कहा गया।
पूर्वार्ध - 12 बजे दिन से 12 बजे रात्रि तक।
उत्तरार्ध - 12 बजे रात्रि से 12 बजे दिन तक।
पूर्वार्ध में तीव्र " म' " की प्रधानता मानी गई है, तथा उत्तरार्ध में शुद्ध " म " की प्रधानता मानी गई है। जैसे -
राग भैरव, और राग बहार में शुद्ध "म" का प्रयोग किया जाता है। अतः इस राग का गायन समय उत्तरार्ध यानी 12 बजे रात्रि से 12 बजे दिन तक में होगा।
इसी प्रकार राग मारवा, राग मुल्तानी व पूर्वी रागों में " तीव्र मध्यम " प्रयोग किया जाता है। इसलिए इन रागों का गायन समय दिन का पूर्वार्ध अर्थात 12 बजे रात्रि से 12 बजे दिन तक में होता है।
Note - अध्वदर्शक स्वर केवल संधिप्रकाश रागों में ही फिट बैठता है। अन्य रागों में अध्वदर्शक स्वर का नियम ठीक से लागू नहीं होता। जैसे- राग बसंत में दोनों मध्यम का प्रयोग है परंतु इस राग में तीव्र " म' " की प्रधानता है फिर भी इस का गायन समय रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात उत्तरार्ध में है, जबकि इसका गायन समय पूर्वार्ध में होना चाहिए था। इसी प्रकार अन्य राग भी है जो अध्वदर्शक स्वर का नियम का पालन नहीं करते। जैसे- राग परज, हिंडोल, तोड़ी , भीमपलासी , बागेश्वरी दुर्गा तथा राग देश अध्वदर्शक स्वर का नियम का पालन नहीं करते हैं।
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