तुलसीदास भजन- भजमन राम चरण सुखदाई
" कलयुग केवल नाम अधारा, सुमिर सुमिर नर उतरहिं पारा।"
।। स्थाई ।।
भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई
।। अंतरा ।।
जिन चरनन ते निकसी सुरसरि शंकर जटा समाई।
जटा शंकरी नाम पर्यो है त्रिभुवन तारन आई ।।
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
जिन चरनन की चरण पादुका, भरत रहे मन लाई ।
सोई चरन केवट धोइ लीन्हो, तब हरि नाव चढ़ाई।।
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
सोई चरन संतन जन सेवत, सदा रहत सुखदाई।
सोइ चरन गौतमऋषि-नारी परसि परमपद पाई॥
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
दंडकबन प्रभु पावन कीन्हो ऋषियन त्रास मिटाई।
सोई प्रभु त्रिलोकके स्वामी कनक मृगा सँग धाई॥
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
कपि सुग्रीव बंधु भय-ब्याकुल तिन्ह जय छत्र धराई
रिपु को अनुज विभीषण निसिचर परसत लंका पाई॥
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
शिव सनकादिक अरु ब्रह्मादिक षेष सहस मुख गाई।
तुलसीदास मारुत-सुतकी प्रभु निज मुख करत बढाई॥
--(भजमन राम चरण सुखदाई
भजमन राम चरण सुखदाई)
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