khane ko fal Diya hai pine Ko jal Diya hai lyrics Dharti Mata geet खाने को फल दिया है, पीने को जल दिया है
धरती माता गीत / पृथ्वी गीत - खाने को फल दिया है, पीने को जल दिया है
।। स्थाई ।।
(खाने को फल दिया है, पीने को जल दिया है)2
तुम रहना जाओ भूखे, अनाज भी दिया है
आंचल में मैंने तुमको, रहने को घर दिया है
और पुष्पा की हवा से, सांसो को भर दिया है
--(खाने को फल दिया है, पीने को जल दिया है)
।। अन्तरा ।।
1) पर तुमने मेरे जिस्म पे, आघात कर दिया है
विश्वास था तुम ही पे, विश्वासघात किया है
गंदा किया है जल को, बर्बाद यू किया है
मैं पूछती हूं तुमसे, अपराध क्यों किया है!
अपराध क्यों किया है!
--(खाने को फल दिया है, पीने को जल दिया है)
2) यूं स्वार्थी नहीं मैं, अपनी फिकर नहीं है
हर जुल्म सह चुकी हूं, हर यातना सही है
अब जहर सी हवा में, मुंह खोलना पड़ा है
कुछ जिंदगी के खातिर, अब बोलना पड़ा है
अब बोलना पड़ा है! अब बोलना पड़ा है!
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