गीत - मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने, बांट लिया इंसान को
।। स्थाई ।।
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने, बांट लिया इंसान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटों इंसान को
मत बांटों इंसान को!
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने, बांट लिया इंसान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटों इंसान को
मत बांटों इंसान को!
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने….
।। अन्तरा ।।
1) (अभी राह तो शुरू हुई है, मंजिल बैठी दूर है
उजियाला महलों में बंद है, हर दीपक मजबूर है)2
हर दीपक मजबूर है!
मिला न सूरज का संदेशा, हर घाटी मैदान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटों इंसान को
मत बांटों इसान को!
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने….
2) (अब भी हरी भरी धरती है, ऊपर नील वितान है)2
पर न प्यार हो तो जग सूना, जलता रेगिस्तान है
जलता रेगिस्तान है!
अभी प्यार का जल देना है, हर प्यासी चटटान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटों इंसान को
मत बांटों इसान को!
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने….
3) (साथ उठें सब तो पहरा हों, सूरज का हर द्वार पर)2
हर उदास आंगन का हक हो,खिलती हुई बहार पर
खिलती हुई बहार पर!
रौंद न पाएगा फिर कोई, मौसम की मुस्कान को
धरती बांटी, सागर बांटा, मत बांटों इंसान को
मत बांटों इसान को!
मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर ने….
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